किसे प्रणाम


राजा अनमित्र की पत्नी भद्रा ने एक ऐसे दिव्य पुत्र को जन्म दिया, जिसे पूर्व जन्म की सभी घटनाओ का ज्ञान था. इसी कारण वह बालक माता से कुछ अलग थलग रहता था . भद्रा ने उसे रिझाने के अनेक प्रयास किये, किन्तु असफल रही.अंत में क्रोधित होकर उसने बालक को वन में छुड़वा दिया.
                                वन में एक भयंकर राक्षसी  रहती थी .उसे बच्चो का मांस अत्यंत प्रिय था.लेकिन
भोजन से पूर्व वो बच्चो को परस्पर बदलने का खेल खेलती थी .उसने वन में पड़े हुए भद्र के पुत्र को विक्रांत नामक राजा के पुत्र से बदल दिया.तदन्तर उसने विक्रांत के पुत्र को एक ब्राह्मण के घर में सुला दिया और उस ब्राह्मण के पुत्र को मारकर खा गई. इस प्रकार खेल खेल में राक्षसी ने बच्चो को बदल दिया.
                             
 राजा विक्रांत ने बालक का नाम 'आनंद' रखा और उसका पालन पोषण करने लगा.युवा होने पर
राजा ने उसे विद्याध्यन के लिए गुरु के साथ भेजने का निश्चय किया. गुरु ने आनंद को विद्यार्जन से पूर्व माता के चरण स्पर्श करने को कहा. आनंद विनम्र स्वर में बोला,"गुरुदेव.आपने माता के चरण स्पर्श करने को कहा है.परन्तु ये तो बताया ही नहीं की मई जन्म देने वाली माता को प्रणाम करू अथवा पालन करने वाली माता को?"
यह बात सुन कर वह उपस्थित सभी लोग विस्मित रह गए. राजा विक्रांत ने आनंद से इसका रहस्य पूछा.तब आनंद बोला. "राजन, मेरा जन्म राजा अनमित्र की पत्नी भद्रा के गर्भ से हुआ है.उन्होंने मुझे वन में छुड़वा दिया था.एक राक्षसी ने मुझे आपके पुत्र के साथ बदल दिया था.इस समय आपका पुत्र निकट के गाव में एक ब्राह्मण के घर चैत्र नाम से पल बढ़ रहा है."राजा विक्रांत ने उसी समय ब्राह्मण सहित चैत्र को अपने पास बुला लिया .तदन्तर ब्राह्मण को साडी स्तिथि बता करा धन देकर विदा कर दिया.
            इसके बाद आनंद वन में जाकर कठोर तपस्या करने लगा.तपस्या करते हुए उसे हजारो वर्ष बीत गए.अंततः ब्रह्माजी साक्षात् प्रकट हुए और मनोवांछित वर मांगने को कहा.आनंद ने वरदान में मोक्ष माँगा.
ब्रह्माजी बोले,"वत्स, मनुष्य द्वारा अपने कर्म भोगे बिना मोक्ष संभव नहीं है.यद्यपि तुम मोक्ष के अधिकारी हो, लेकिन उससे पहले तुम्हे इस पृथ्वी के सभी भोगो का उपभोग करना है.मई तुम्हे मनु पद पर आसीन होने का वरदान देता हु. पूर्व जन्म में तुम मेरे चक्षु से उत्पन्न हुए थे, इसीलिए इस जन्म में तुम चक्षुस मनु के नाम से प्रसिद्द होगे ."यह कहकर ब्रह्मा जी अंतर्धान हो गए .
तत्पश्चात आनंद संपूर्ण पृथ्वी को विजयी कर चाक्षुस नाम से मनु पद पर आसीन हुआ .
एक दिन चाक्षुस ने ब्रह्मर्षि पुलह से परम कल्याणकारी ज्ञान प्रदान करने की प्रार्थना की.पुलह ने उसको भगवती जगदम्बा की आराधना करने का परामर्ष दिया .चाक्षुस ने विरजा नदी के तट पर जाकर कठोर तपस्या आरम्भ कर दी .उसने बारह वर्ष तक निरंतर भगवती के सरस्वती बीज मंत्र का जाप किया.इससे प्रसन्न होके भगवती ने दर्शन दिए और वर स्वरुप दिव्यज्ञान प्रदान किया.साथ ही चाक्षुस को पुत्रवान होने का भी  वरदान दिया.
इस प्रकार चाक्षुस ने सहस्र वर्ष तक पृथ्वी पर राज किया और अंत में भगवती के परम धाम को प्राप्त हुआ.

No comments:

Post a Comment