खनित्र जैसे धर्मात्मा, सदाचारी नीतिवान और परोपकारी राजा को पाकर प्रजा अत्यंत प्रसन्न थी।उनकी देख रेख में राज्य के सभी कार्य व्यवस्थित और सुचारू रूप से होते थे।उन्होंने प्रजा की सुविधाओ को ध्यान में रखते हुए अनेक कल्याणकारी कार्य किये थे।
उपनिषद् की कथाए
कवी बना शुक्राचार्य
महर्षि अंगिरा और भृगु मुनि परस्पर गहरे
मित्र थे.उनकी मित्रता तीनो लोको में प्रसिद्द थी.अंगिरा का जीव नामक एक
पुत्र था, वही भृगु के पुत्र का नाम कवी था.दोनों बालक अत्यंत बुद्धिमान
तथा एक समान आयु के थे.पिता के समान उन दोनों में भी गहरी मित्रता
थी.इसलिए जब वे शिक्षा ग्रहण करने योग्य हुए तो भृगु ने निश्चय किया कि
महर्षि अंगिरा ही दोनों को शिक्षा प्रदान करेंगे.अतः कवी अंगिरा ऋषि के
आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करने लगा.किन्तु पुत्र मोह के कारण अंगिरा
दोनों में भेदभाव करने
तिनका नहीं उड़ा
एक बार भगवती दुर्गा कि कृपा से देवताओ ने देवासुर संग्राम में दैत्यों को पराजित कर दिया.देवता इस बात से अंजान थे कि भगवती के शक्ति के कारण ही उनकी विजय हुई है.वे इसे अपने बल पराक्रम की जीत मानते हुए सभी लोको में अपनी शक्ति का बखान कर रहे थे.
देवताओ को अहंकार के नशे में चूर देख भगवती ने उन्हें सबक सिखाने का निश्चय
यज्ञ, दक्षिणा, फल
भगवान श्री कृष्ण कि भक्त अनेक गोपिया थी,परन्तु उनमे से सुशीला नामक एक गोपी उन्हें अत्यंत प्रिय थी.अपने नाम के अनुरूप सुशीला बहुत सुन्दर,सुशिल और बुद्धिमान थी.श्रेष्ठ गुणों एवं लक्षणों से युक्त होने के कारण उसकी तुलना देवी लक्ष्मी से कि जाती थी.उसने तन मन से स्वयं को भगवान श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया था.उसकी भक्ति और निष्ठां तीनो लोको में प्रसिद्द थी.चुकी श्री कृष्ण भी सुशीला से प्रेम करते थे, इसलिए भगवती राधा के मन में उसके प्रति इर्ष्या का भाव रहता था.
एक बार सुशीला भगवान् श्री कृष्ण के पास बैठ के प्रेमालाप कर रही थी.सहसा वह भगवती राधा आ गई
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