बुरे का अंत बुरा

 खनित्र जैसे धर्मात्मा, सदाचारी नीतिवान और परोपकारी राजा को पाकर प्रजा अत्यंत प्रसन्न थी।उनकी देख रेख में राज्य के सभी कार्य व्यवस्थित और सुचारू रूप से  होते थे।उन्होंने प्रजा की सुविधाओ को ध्यान में रखते हुए अनेक कल्याणकारी कार्य किये थे।

दीक्षा

 द्वापर युग में भगवान् विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया।इस अवतार में  उन्होंने कंस, तृणावर्त , पूतना, कालयवन आदि अनेक पापियों का  संहार कर पृथ्वी का बोझ कम किया.उनकी वीरता, सुन्दरता और बुद्धिमत्ता का डंका दसो दिशाओ में बजता था।

कैद में रावण


एक बार नर्मदा नदी के तट पर लंकापति रावण का शिविर लगा हुआ था।वह वह सेना सहित विश्राम कर रहा था।सहसा नर्मदा कि विशाल जलधारा किनारों को तोडती हुई उनके शिविर कि और निकल आई।उसके तीव्र वेग से समूचा शिविर उखड गया।यह देख कर रावण क्रोधित हो उठा।उसने सैनिको को बुलाया और गरजते हुए बोला,"सैनिको!

पृथ्वी परिक्रमा

क बार ब्रह्माजी के तपोबल से अत्यंत सुन्दर और श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त एक कन्या उत्पन्न हुई।उसकी देह से दिव्य तेज निकल रहा था;होठो पर सुन्दर मुस्कान खेल रही थी।उसे देखकर ब्रह्मा जी का ह्रदय

काल का ग्रास

एक बार अग्निदेव भूख से पीड़ित हो उठे।अपनी क्षुधा  शांत करने के लिए वे विकराल रूप धारण कर पृथ्वी कि और बढ़े। परन्तु उन दिनों पृथ्वी पर हैहयवंशी राजा कार्तवीर्य अर्जुन का राज था।वे अपनी सहस्र भुजाओ के साथ उसकी रक्षा करते थे।देवगण, यक्ष,दैत्य, राक्षस सभी उनसे भयभीत

कवी बना शुक्राचार्य

महर्षि  अंगिरा और भृगु  मुनि परस्पर गहरे मित्र थे.उनकी मित्रता तीनो लोको में प्रसिद्द थी.अंगिरा का जीव नामक एक पुत्र था, वही भृगु के पुत्र का नाम कवी था.दोनों बालक अत्यंत बुद्धिमान तथा एक समान  आयु के थे.पिता के समान  उन दोनों में भी गहरी मित्रता थी.इसलिए जब वे शिक्षा ग्रहण करने योग्य हुए तो भृगु ने निश्चय किया कि महर्षि अंगिरा ही दोनों को शिक्षा प्रदान करेंगे.अतः कवी अंगिरा ऋषि के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करने लगा.किन्तु पुत्र मोह के कारण अंगिरा दोनों में भेदभाव करने

तिनका नहीं उड़ा

क बार भगवती दुर्गा कि कृपा से देवताओ ने देवासुर  संग्राम में दैत्यों को पराजित कर दिया.देवता इस बात से अंजान थे कि भगवती के शक्ति के कारण ही उनकी विजय हुई है.वे इसे अपने बल पराक्रम की  जीत मानते हुए सभी लोको में अपनी शक्ति का बखान कर रहे थे.
                       देवताओ को अहंकार के नशे में चूर देख भगवती ने उन्हें सबक सिखाने का निश्चय

यज्ञ, दक्षिणा, फल

गवान श्री कृष्ण कि भक्त अनेक गोपिया थी,परन्तु उनमे से सुशीला  नामक एक गोपी उन्हें अत्यंत प्रिय थी.अपने नाम के अनुरूप सुशीला बहुत सुन्दर,सुशिल और बुद्धिमान थी.श्रेष्ठ गुणों एवं लक्षणों से युक्त होने के कारण उसकी तुलना देवी लक्ष्मी से कि जाती थी.उसने तन मन से स्वयं को भगवान श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया था.उसकी भक्ति और निष्ठां तीनो लोको में प्रसिद्द थी.चुकी श्री कृष्ण भी सुशीला से प्रेम करते थे, इसलिए भगवती राधा के मन में उसके प्रति इर्ष्या का भाव रहता था.
एक बार सुशीला भगवान् श्री कृष्ण के पास बैठ के प्रेमालाप कर रही थी.सहसा वह भगवती राधा आ गई