यज्ञ, दक्षिणा, फल

गवान श्री कृष्ण कि भक्त अनेक गोपिया थी,परन्तु उनमे से सुशीला  नामक एक गोपी उन्हें अत्यंत प्रिय थी.अपने नाम के अनुरूप सुशीला बहुत सुन्दर,सुशिल और बुद्धिमान थी.श्रेष्ठ गुणों एवं लक्षणों से युक्त होने के कारण उसकी तुलना देवी लक्ष्मी से कि जाती थी.उसने तन मन से स्वयं को भगवान श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिया था.उसकी भक्ति और निष्ठां तीनो लोको में प्रसिद्द थी.चुकी श्री कृष्ण भी सुशीला से प्रेम करते थे, इसलिए भगवती राधा के मन में उसके प्रति इर्ष्या का भाव रहता था.
एक बार सुशीला भगवान् श्री कृष्ण के पास बैठ के प्रेमालाप कर रही थी.सहसा वह भगवती राधा आ गई
.उन्होंने जब सुशीला को श्री कृष्ण के निकट बैठे देखा तो उनके क्रोध कि सीमा नहीं रही.उन्होंने सुशीला को उसी समय गोलोक से निष्कासित होने का शाप दे दिया.शापित सुशीला ने उसी समय गोलोक त्याग दिया और हिमालय पे जाके कठोर तपस्या करने लगी.
                       इधर, राधा के ईर्ष्यालु व्यवहार से रुष्ट होके श्री कृष्ण अदृश्य हो गए.यह देखकर राधा भयभीत हो गई और आंसू बहते हुए उन्हें पुकारने लगी-"भगवान, आप मुझे प्राणों से भी अधिक प्रिय है.आपके बिना रहे कि कल्पना मेरे लिए असहनीय है.स्वामी, स्त्रियों का व्यवहार इर्ष्या युक्त होता है. मैंने इर्ष्या वश सुशीला को शाप देने का अपराध किया है.कृपया मेरा अपराध छमा करे.दर्शन दे, प्रभु!अन्यः मेरे प्राण निकल जाएँगे."
  तदन्तर राधा भगवान श्री कृष्ण का ध्यान कर उनका चिंतन करने लग.अंततः  श्री कृष्ण प्रकट हुए और राधा को समझा बुझा कर शांत किया.
सुशीला ने अनेक वर्षो तक कठोर तपस्या कि.उसने अन्न जल त्याग दिया तथा एक पैर पर खड़े होकर भगवान श्री कृष्ण के पर ब्रम्ह स्वरुप का चिंतन करने लगी.उसकी तपस्या ने तीनो लोक को विचलित कर दिया.ताप के फल स्वरुप उसके शरीर से निकलने वाले दिव्या तेज ने सूर्य को भी ढक लिया.ताप का ऐसा स्वरुप देख कर इन्द्र भी भयभीत हो गए.वे भगवान श्री कृष्ण कि शरण में गए और उन्हें सारी  बात बता कर सुशीला को वरदान देने को कहा.
तब भगवान श्री कृष्ण सुशीला को दर्शन देते हुए बोले," सुशीले! तुम्हारी भक्ति और निष्ठां ने मुझे यहाँ आने के लिए बाध्य कर दिया है.तुम्हारी जैसी कठोर तपस्या ऋषि-मुनियों के लिए दुर्लभ है.हे सुशीले.मै तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हु.मांगो तुम्हे क्या वर चाहिए?"
सुशीला उनकी स्तुति करते हुए बोली, भगवान! सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो आपसे बढ़ कर हो.आपको पति रूप में प्राप्त करना ही मेरी तपस्या का एकमात्र उद्देश्य है.यदि आप प्रसन्न है तो मुझे अपनी पत्नी बनने का गौरव प्रदान करे."
"तथास्तु,हे सुशीले.अगले जन्म में तुम महा लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न होकर दक्षिणा नाम से प्रसिद्द होगी.तब मेरे अंश से उत्पन्न यज्ञ तुम्हारा वरन करेंगे."श्रीकृष्ण ने उसे मनो वांछित वरदान प्रदान किया.
            तदन्तर सुशीला ने शरीर त्याग दिया और ज्योति रूप होकर भगवान श्री कृष्ण के श्री चरणों में लीन हो गई .
सृष्टि के आरम्भ में यज्ञ करने पर देवताओ को हविष्य का भाग प्राप्त नहीं होता था.उनकी विनती पर भगवती जगदम्बा ने ने अपने दक्षिणी भाग से देवी दक्षिणा को प्रकट किया.दक्षिणा अत्यंत सुन्दर और रूपवती युवती थी.उसने यज्ञ के साथ विवाह किया.विवाह के बाद दक्षिणा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम फल रखा गया.यही बालक मनुष्यों को उनके यज्ञ-हवनादि कर्मो का फल प्रदान करता था.
इस प्रकार श्री कृष्ण ने यज्ञ रूप में दक्षिणा का वरण किया.

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