कवी बना शुक्राचार्य

महर्षि  अंगिरा और भृगु  मुनि परस्पर गहरे मित्र थे.उनकी मित्रता तीनो लोको में प्रसिद्द थी.अंगिरा का जीव नामक एक पुत्र था, वही भृगु के पुत्र का नाम कवी था.दोनों बालक अत्यंत बुद्धिमान तथा एक समान  आयु के थे.पिता के समान  उन दोनों में भी गहरी मित्रता थी.इसलिए जब वे शिक्षा ग्रहण करने योग्य हुए तो भृगु ने निश्चय किया कि महर्षि अंगिरा ही दोनों को शिक्षा प्रदान करेंगे.अतः कवी अंगिरा ऋषि के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करने लगा.किन्तु पुत्र मोह के कारण अंगिरा दोनों में भेदभाव करने
लगे.कवी की अपेक्षा वे जीव की शिक्षा दीक्षा पर अधिक ध्यान देते थे.उन्होंने जीव को तो वेदों के गूढ़ रहस्यों से अवगत करवाया, जबकि कवी को केवल उपरी ज्ञान देकर ही संतुष्ट हो गए.
      कवी अनेक दिनों से गुरु के इस व्यवहार को सहन कर रहा था.एक योग्य शिष्य होने के कारण वह अपने गुरु को बहुत सम्मान करता था.लेकिन जब उनका व्यवहार असहनीय हो गया तो एक दिन कवी उनसे बोला, "गुरुदेव,जिस प्रकार एक पिता के लिए उसकी दो संतानों में कोई अंतर नहीं होता, उसी प्रकार गुरु की दृष्टि में सभी शिष्य एक सामान होने चाहिए.जब गुरु ही शिष्यों में भेदभाव करने लग जाए तो उसका यह व्यवहार कदापि धर्मानुकूल नहीं होता.गुरुवर  शिष्य भी पुत्र के समान होता है.इसलिए यदि जीव आपका पुत्र है तो मै भी आपके पुत्र के समान हु.कृपया हम दोनों में कोई  भेदभाव न करे."
अंगिरा ने कवी की बात अनसुनी कर दी और पहले के भांति दोनों को पृथक पृथक पढ़ाते  रहे.अंततः कवी आश्रम छोड़कर अपने घर लौट चला.
      मार्ग में गौतम मुनि का आश्रम था.कवी ने उनकी बौद्धिकता, विद्वता  और दयालुता के बारे में बहुत कुछ सुना हुआ था.ऐसे महान  तपस्वी के दर्शन किये बिना चले जाना उसे उचित नहीं लगा.वह गौतम मुनि के पास गया और उनकी स्तुति करते हुए बोला, "हे मुनिवर! आप परम ज्ञानी और विद्वान् है. आपके ज्ञान की प्रसिद्धि दसो दिशाओ में गुंजायमान है.जीवन पथ पर भटकते हुए कई मनुष्यों ने आपके मार्गदर्शन का लाभ उठाकर सफलता प्राप्त की है.मुनिवर, कृपया ज्ञान प्राप्ति के लिए योग्य गुरु के विषय में बताकर मेरा जीवन भी सार्थक करे."
      "वत्स, संसार में केवल भगवान शिव ही एकमात्र योग्य गुरु है.वे ही सृष्टि के गूढ़ से गूढ़ रहस्यों को जानते है.उनके लिए कोई भी विद्या  अछूती या अदृश्य नहीं है.वे चाहे तो मुर्ख को भी परमज्ञानी बना सकते है.उनकी पूजा आराधना मात्र से तुम उनकी कृपा दृष्टि प्राप्त कर सकते हो.भक्त वत्सल भगवान शिव तुम्हारी सभी मनोकामनाए अवश्य पूर्ण करेंगे." गौतम मुनि ने कवी को समझाया.
       कवी के ह्रदय में भगवान्  शिव से ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न हो गई.वह उसी समय गौतमी गंगा में स्नान करके भगवान्  शिव की आराधना करने लगा.अंततः भगवान शिव  प्रसन्न होकर साक्षात् प्रकट हुए और वर मांगने के लिए कहा.
       कवी बोला,"हे तीनो लोको के स्वामी!आपसे कोई बात छिपी नहीं है. मेरी आराधना के पीछे का उद्देश्य भी आप भली भांति जानते है.भगवान्, मेरे लिए आप आराध्य देव और गुरु दोनों ही है.कृपया अपना शिष्य स्वीकार कर मुझे अनुगृहित करे.मुझे वह दिव्य ज्ञान प्रदान करे जो परम तपस्वी के लिए भी दुर्लभ है."
       तब भगवान शिव  ने कवी को वैदिक और लौकिक विद्या प्रदान की.साथ ही मृत संजीविनी विद्या भी प्रदान की जिससे देवगण भी अनभिज्ञ थे.इस विद्या द्वारा उसे किसी भी मृत प्राणी को पुनरुज्जीवित करने की शक्ति प्राप्त हो गई.आगे चल कर कवी शुक्राचार्य के नाम से प्रसिद्द होकर  दैत्यों का गुरु बना.
       जिस स्थान पर भगवान शिव ने शुक्राचार्य को दर्शन दिए थे, वह स्थान 'शुक्र तीर्थ' कहलाया.

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