पृथ्वी परिक्रमा

क बार ब्रह्माजी के तपोबल से अत्यंत सुन्दर और श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त एक कन्या उत्पन्न हुई।उसकी देह से दिव्य तेज निकल रहा था;होठो पर सुन्दर मुस्कान खेल रही थी।उसे देखकर ब्रह्मा जी का ह्रदय
प्रसन्नता से भर उठा।उन्होंने कन्या को  ह्रदय से लगा लिया।परन्तु उनके समक्ष कन्या के लालन पालन के समस्या उठ  खड़ी हुई।वे स्वयं सृष्टि की रचना के कार्य में संलग्न थे.ऐसे में वे स्वयं उसका पालन पोषण नहीं कर सकते थे।
         तभी देवर्षि नारद वहा आ पहुचे।ब्रह्माजी के पास एक सुन्दर बालिका को देखकर नारद अत्यंत विस्मित हुए।वे बोले,"हे पिताश्री!यह बालिका कौन है और यहाँ क्या कर रही है?इसके मुख कि भाव भंगिमा और विशिष्ट चिन्ह इसके परम तपस्विनी और सौभाग्यवती होने की भविष्यवाणी कर रहे है।इसे देखकर मन में  असीम आनंद और प्रसन्नता हिलोरे ले रही है।कृपया मेरी जिज्ञासा शांत करे।"
         ब्रह्माजी बोले,"वत्स,यह कन्या मेरी मानस-पुत्री है।इसका जन्म मेरे तपोबल से हुआ है।परन्तु वत्स,इसके पालन पोषण में मै असमर्थ हु।सृष्टि में कोई ऐसा मुझे दिखाई नहीं देता, जो इसका पालन पोषण कर सके।वत्स, यदि तुम इसका भर अपने कंधो पर ले लो तो मै निश्चिंत हो जाऊंगा।"
         नारद बोले,"पिताश्री, मै स्वयं स्थान स्थान पर भटकता रहता हु, इसका लालन पालन किस प्रकार करूँगा?मेरा न कोई घर है और नहीं कोई परिवार।मुझ जैसे वैरागी और चलायमान तपस्वी के साथ इसका रहना असंभव है।पिताश्री यदि महर्षि गौतम इसके पालन पोषण का भार संभाल ले तो आपकी चिंता का निदान हो जाएगा।उनके समान श्रेष्ठ तपस्वी, विद्वान, जितेन्द्रिय तथा वेदज्ञाता आप द्वारा सौपे गए कार्य को भलीभांति पूर्ण करेंगे।"
         ब्रह्माजी को उनका परामर्श उचित लगा।वे उसी समय महर्षि गौतम के आश्रम में पहुचे और बोले, " हे वत्स, मै अपनी पुत्री के पालन पोषण की जिम्मेदारी तुम्हे सौपता हु।जब ये कन्या युवा हो जाए तो इसे मुझे सौप देना."यह कहकर उन्होंने गौतम को वह कन्या सौप दी।
         महर्षि गौतम ने कन्या का नाम 'अहल्या' रखा और भली भांति उसका पालन करने लगे।वे उसकी प्रत्येक इच्छा और आवश्यकता का ध्यान रखते थे।उन्होंने अहल्या को वैदिक ज्ञान देकर धार्मिक कर्मकाण्डो में  भी पारंगत कर दिया।इस प्रकार अनेक वर्ष बीत गए और अहल्या युवा हो गई।तदन्तर महर्षि गौतम ने उसे ब्रह्मा जी को सौप दिया।
         अब ब्रह्मा जी के समक्ष अहल्या के विवाह की समस्या खड़ी हो गई।महर्षि गौतम द्वारा अहल्या को दिए गए संस्कारो से वे बड़े प्रसन्न थे।उन्होंने मन ही मन निश्चय कर लिया की वे अहल्या का विवाह गौतम के साथ ही करेंगे।परन्तु इससे पूर्व ही अहल्या के रूप सौंदर्य से प्रभावित होकर इन्द्र, कुबेर, वरुण, अग्नि, चन्द्र आदि देवगण एक एक कर ब्रह्मा जी के पास आए और अहल्या से विवाह करने की इच्छा प्रकट की।तब ब्रह्मा जी ने शर्त रखी  कि जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौट आएगा, वे अहल्या का विवाह उसके साथ कर देंगे।शर्त सुनते ही सभी देवगण पृथ्वी  की परिक्रमा करने चल पड़े।
         महर्षि गौतम वेदों के ज्ञाता थे।उन्होंने वेदों में पढ़ा था की जो गाय आधा प्रसव कर चुकी हो, वह पृथ्वी तुल्य है।यदि उस समय उसकी परिक्रमा कर ली जाए तो इसे पृथ्वी परिक्रमा माना जाता है।उस समय गर्भवती कामधेनु आधा प्रसव कर चुकी थी।बछड़ा शरीर से आधा ही बाहर निकला था।महर्षि गौतम कामधेनु की परिक्रमा कर ब्रह्मा जी के पास पहुच गए।
         गौतम मुनि की बुद्धिमत्ता से ब्रह्मा जी अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने अहल्या का विवाह गौतम के साथ कर दिया।तदन्तर वे अहल्या को अपने आश्रम में ले आए।

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