कैद में रावण


एक बार नर्मदा नदी के तट पर लंकापति रावण का शिविर लगा हुआ था।वह वह सेना सहित विश्राम कर रहा था।सहसा नर्मदा कि विशाल जलधारा किनारों को तोडती हुई उनके शिविर कि और निकल आई।उसके तीव्र वेग से समूचा शिविर उखड गया।यह देख कर रावण क्रोधित हो उठा।उसने सैनिको को बुलाया और गरजते हुए बोला,"सैनिको!
हमारे विश्राम में बाधा डालने का साहस कोई साधारण प्राणी नहीं कर सकता।अवश्य किसी अहंकारी देवता या गन्धर्व ने यह दुस्साहस किया है।जाओ और उसे पकड़कर शीघ्र हमारे सामने ले आओ।हम स्वयं उसे उसकी उद्दंडता के लिए दण्डित करेंगे।"
          आज्ञा पाते ही सैनिक शीघ्रता से अपराधी को बंदी बनाने के लिए चल पड़े।कुछ दुरी पे उन्हें राजा कार्तवीर्य अपने रानियों के संग  जल क्रीडा करते हुए दिखाई दिए।उनकी शक्तिशाली भुजाए नर्मदा के जल को आंदोलित  कर रही थी।सैनिको ने उन्हें चारो और से घेर लिया तथा सबको रावण के पास चलने के लिए कहा।
          क्रीड़ा  में विघ्न पड़ने से कार्तवीर्य क्रोधित हो उठे।उन्होंने पल भर में ही सैनिको को काल का ग्रास बना दिया।उनमे से एक सैनिक किसी तरह से प्राण बचाकर लौट आया और रावण को सारी बात बताते हुए बोला, "हे राजन! माहिष्मती पूरी के राजा कार्तवीर्य अपनी रानियों के संग नर्मदा में क्रीड़ा कर रहे है।उनकी विशाल भुजाओ के प्रहार से नर्मदा का जल उछ्ल-उछ्ल कर किनारों से बाहर निकल रहा है।जब सैनिको ने उन्हें बंदी बनाने का प्रयास किया तो उन्होंने सभी को मौत कि नींद सुला दिया।हे दैत्यराज ! हजार भुजाओ से युक्त होने के कारण वे अत्यंत शक्तिशाली है.केवल आप ही उन्हें दण्डित कर सकते  है।"
          "उस दुष्ट का इतना दुस्साहस कि रावण को चुनौती दे। उसे अपनी सहस्र भुजाओ पर बहुत अहंकार है।आज मै  उसे मारकर  उसका घमंड चूर चूर कर दूंगा."यह कहकर रावण ने अस्त्र शस्त्र धारण कर लिए और युद्ध के लिए चल पड़ा।
           शीघ्र ही वह कार्तवीर्य के पास जा पंहुचा और ललकारते हुए बोला, "अरे दुष्ट! तुने रावण को चुनौती देकर अपने काल को आमंत्रित  किया है।जिस रावण ने भगवान्  शिव सहित कैलाश को अपनी भुजाओ में उठा लिया था, वही रावण आज तेरी भुजाओ  को काटकर तेरा मस्तक धड़  से अलग कर देगा।"
           शत्रु की  ललकार कार्तवीर्य सहन न कर सके।उन्होंने धनुष बाण धारण किये और रावण से युद्ध करने लगे।रावण आने कार्तवीर्य पर दिव्य  बाणों की  झड़ी लगा दी; परन्तु वे बाण उनका अहित किये बिना ही लौट गए।तत्पश्चात कार्तवीर्य ने पांच बाणों से ही रावण सहित उसकी सारी सेना को मूर्छित कर दिया।उन्होंने रावण को अपनी धनुष की प्रत्यंचा से बांधा और उसे लेकर अपने राज्य लौट आए।
           'राक्षस राज रावण को कार्तवीर्य ने बंदी बना लिया है' , यह समाचार तीनो लोको में फ़ैल गया।दसो दिशाओ में कार्तवीर्य की जय जयकार होने लगी।देवताओ और ऋषि मुनियों ने चैन की सांस ली। परन्तु एक मुनि ऐसे भी थे, जो इस समाचार से व्यथित हो गए।रावण महर्षि पुलस्त्य का पौत्र था,अतः कार्तवीर्य के पास जाकर उन्होंने रावण को मुक्त करने की प्रार्थना की।
            कार्तवीर्य धर्मात्मा और ब्राह्मणों का सम्मान करने वालो में से थे।उन्होंने पुलस्त्य मुनि की प्रार्थना स्वीकार करली और रावण को मुक्त कर दिया।रावण लज्जित होकर लंका लौट गया।
            इस प्रकार देवताओ को भी पराजित कर देनेवाले रावण को बंदी बनाकर कार्तवीर्य ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी।

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