बुरे का अंत बुरा

 खनित्र जैसे धर्मात्मा, सदाचारी नीतिवान और परोपकारी राजा को पाकर प्रजा अत्यंत प्रसन्न थी।उनकी देख रेख में राज्य के सभी कार्य व्यवस्थित और सुचारू रूप से  होते थे।उन्होंने प्रजा की सुविधाओ को ध्यान में रखते हुए अनेक कल्याणकारी कार्य किये थे।
प्रातः काल ब्राह्मणों एवं निर्धनों को धन-अन्न का दान देना उनका नित्य का कार्य था। और उनकी जय जयकार होती थी।
                  शौरि,उदावासु, सुनय  और महारथ-ये चारो खनित्र के छोटे भाई थे।खनित्र इन्हें अपने पुत्र के समान समझते थे।चारो ही उन्हें अपने प्राणों से अधिक प्रिय थे।यही कारण था कि उन्होंने अपने राज्य को चार भागो में विभक्त करके चारो भाइयो को वहा  का राजा नियुक्त कर दिया।इस प्रकार पूर्व दिशा का राज्य शौरि, पश्चिम का सुनय, उत्तर दिशा का महारथ और दक्षिण का राज्य उदावासु संभाल  रहा था।
                  शौरि का विश्ववेदी नामक एक मंत्री था, जो बड़ा मक्कार और चाटुकार था।वह राजा खनित्र से मन ही मन इर्ष्या  करता था और उनका अहित करने का अवसर ढूंढा  करता था।
                  एक बार शौरी एकांत में बैठे हुए थे।उनके साथ विश्ववेदी भी था।उचित अवसर जानकर विश्ववेदी शब्दों में मिठास घोलते हुए बोला,"राजन, आपकी कीर्ति दसो दिशाओ में  फैली हुई है।देवताओ में देवराज इन्द्र जिस प्रकार  सुशोभित है, उसी प्रकार आप पृथ्वी के राजाओ में साक्षात् इंद्र के समान है।आपके बल, पराक्रम और बुद्धिमत्ता का लोहा शत्रु भी मानते है।यही कारण है की आपके राज में सदा सुख समृद्धि का वास है।यह आपके पुण्य कर्मो का ही फल है।परन्तु राजन, मुझे अभी भी आपके यशोगान में कुछ कमी प्रतीत होती है।"
                  विश्ववेदी की बाते सुन कर शौरी आसमान में उड़ रहे थे।कमी की बात सुनकर वे विस्मित होकर बोले,"कौन सी कमी मन्त्रिवर? कृपया  अपनी बात स्पष्ट शब्दों में कहे।"
                  "राजन!इश्वर ने आपको अतुल्य बल और पराक्रम से युक्त किया है।आपके अन्दर देवताओ के समान श्रेष्ठ गुण विद्यमान है।आपके समान तीनो लोको को जीतने  की योग्यता रखने वाला संसार में दूसरा कौन है?अतः सम्पूर्ण पृथ्वी पर आपका ही एक छत्र  राज्य होना चाहिए।इससे न सिर्फ तीनो लोको में आपकी यश और कीर्ति बढ़ेगी, वरन आपकी गड़ना  देवताओ में होगी।आपको इन्द्र का मित्र बनने  का सौभाग्य प्राप्त होगा।अतुल्य धन सम्पदा, ऐश्वर्य और वैभव आपके  चरणों में होंगे।इस कार्य में आपको शेष भाइयो को अपने पक्ष में कर राजा खनित्र से राज्य में लेकर अपने अधिकार में कर ले।"
                 विश्ववेदी की बातो ने शौरि की बुद्धि भ्रष्ट कर दी।उसने तीनो भाइयो को अपने पक्ष में कर लिया विश्ववेदी दिव्य मंत्रो का ज्ञाता था।उसने तीन अन्य ब्राह्मणों के साथ मिलकर चार भयंकर शक्तिया उत्पन्न की तथा उन्हें राजा खनित्र के वध के लिए भेजा।चारो  शक्तिया मुख से अग्नि उगलते हुई तथा हाथो में खडग लेकर खनित्र  के पास पहुची।लेकिन खनित्र भगवान् शिव के अनन्य भक्त थे।अतएव वे शक्तिया उनका अहित न कर सकी और लौटकर उन्होंने विश्ववेदी सहित तीनो ब्राह्मणों को मार डाला।
              खनित्र को जब इस घटना के बारे में पता चला तो उनका ह्रदय पीड़ा से भर उठा।वे स्वयं को ब्राह्मणों  की हत्या का दोषी मानने लगे।उनका ह्रदय संसार से विरक्त हो गया।अंततः अपने पुत्र क्षुप को राज्य सौपकर वे पत्नियों के साथ वन में चले गए।वह कठोर तपस्या कर उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।

No comments:

Post a Comment