दीक्षा

 द्वापर युग में भगवान् विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया।इस अवतार में  उन्होंने कंस, तृणावर्त , पूतना, कालयवन आदि अनेक पापियों का  संहार कर पृथ्वी का बोझ कम किया.उनकी वीरता, सुन्दरता और बुद्धिमत्ता का डंका दसो दिशाओ में बजता था।
प्रत्येक राजकुमारी उनके साथ विवाह करने के लिए  व्याकुल थी.श्री कृष्ण ने रुक्मिणी, जाम्बवती,  जाम्बवती, मित्रविन्दा,कालिंदी, लक्ष्मणा तथा भद्र-इन आठ राजकुमारियो से विवाह किया।आठो उनकी पतारानिया थी।वे सभी रानियों से समान  प्रेम करते थे।यही कारण था कि उन आठो रानियों में परस्पर प्रेम और सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध थे।सभी एक दुसरे का सम्मान करते थी।
       रुक्मिणी श्रीकृष्ण की प्रधान पटरानी थी।उनके  से उन्होंने  प्रद्युम्न नामक वीर और पराक्रमी पुत्र को जन्म दिया।प्रद्युम्न जैसे पुत्र को पाकर रुक्मिणी धन्य हो गई।
       एक बार रुक्मिणी अपने हाथो से प्रद्युम्न को खाना खिला रही थी।जाम्बवती भी वही निकट बैठी हुई थी।वह अभी  निस्संतान थी।मातापुत्र का प्रेम देखकर उसका ह्रदय भी पुत्र के लिए मचल उठा।अतः वह श्रीकृष्ण के समक्ष मन की बात रखते हुए बोली,"स्वामी,रुक्मिणी कितनी भाग्यशाली है, जिसे आपकी कृपा से प्रद्युम्न जैसे श्रेष्ठ पुत्र की माता बनने  का गौरव प्राप्त हुआ।ऐसे योग्य पुत्र ही माता पिता के यश, सम्मान और मोक्ष प्राप्ति का कारण बनते  है।प्रभु रुक्मिणी के समान मै  भी श्रेष्ठ पुत्र की माता बनना  चाहती हु; मेरा मन भी पुत्र प्रेम के लिए मचल रहा है।आप मेरी यह इच्छा पूर्ण करने की कृपा करे।"
     "देवी, तुम्हारी यह इच्छा अवश्य पूर्ण होगी।शीघ्र ही तुम्हे भी एक श्रेष्ठ पुत्र प्राप्त होगा।इसके लिए मै कठोर तप  करूँगा।मेरे तप  से उत्पन्न पुत्र तुम्हे असीमित सुख प्रदान करेगा।"यह कहकर श्री कृष्ण ने जाम्बवती को कुछ दिन प्रतीक्षा करने  को कहा।
      द्वारका के निकट एक वन था।उस वन में परम शिव भक्त उपमन्यु मुनि रहते थे।उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन शिव उपासना में व्यतीत कर दिया था।भगवान् शिव की उनपर अनन्य कृपा थी।श्रीकृष्ण उनके पास गए तथाताथा वह आने का कारन बताते हुए बोले,"मुनिवर!भगवान् शिव और भगवती पार्वती  भक्तो की संपूर्ण मनोकामनाए पूर्ण करने वाले है।उनकी शरण में जाने वाला  निराश नहीं लौटता।मैंने जाम्बवती को एक तेजस्वी पुत्र प्रदान करने का वचन दिया है।परन्तु इससे पूर्व मै भगवान् शिव और भगवती पार्वती की उपासना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता हु।मुनिवर, संसार में आपके समान शिव भक्त दूसरा कोई नहीं है।इसलिए अपना शिष्य बनाकर मुझे शिव मंत्र और स्तोत्र की दीक्षा दे।"
     उपमन्यु मुनि ने श्री कृष्ण को शिष्य बनाकर उन्हें शिव उपासना के लिए दीक्षा प्रदान की।तदन्तर वे शिव मंत्र का जाप करते हुए कठोर तपस्या करने लगे।अंततः भगवान्  शिव प्रसन्न हुए और  देवी पार्वती  के साथ के साथ साक्षात् प्रकट होकर श्री कृष्ण से वर मांगने के लिए कहा।
     श्रीकृष्ण ने उनसे वरदान में एक पुत्र प्रदान करने की प्रार्थना की।तब भगवान  शिव ने उन्हें वरदान दिया की उनकी सोलह हजार आठ रानियाँ  होंगी तथा प्रत्येक रानी से  उन्हे दस दस पुत्र प्राप्त होंगे।तपस्या पूर्ण होने के बाद श्री कृष्ण द्वारका लौट आए।उनके तप  के तेज से जाम्बवती ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, 'जो संब के नाम से प्रसिद्द हुआ।

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